स्कूल में रैगिंग को रोकने के क्या तरीके हैं ?

रैगिंग शब्द सुनते ही लोगों के दिमाग में अलग तस्वीर बनने लगती है। कई छात्र इस भयावहता का शिकार हुए है। आधुनिकता के साथ रैगिंग के तरीके भी बदलते जा रहे हैं। रैगिंग आमतौर पर सीनियर छात्र अपने जुनियर्स की रैगिंग करते है। रैगिंग के नाम पर अमानवीयता का चेहरा सामने आता है। रैगिंग में गलत व्यवहार, अपमानजनक छेड़छाड़, मारपीट जैसी चीजें की जाती हैं। सीनियर छात्रों के लिए रैगिंग भले ही मौज-मस्ती हो सकती है, लेकिन रैगिंग से गुजरे छात्र के जहन से रैगिंग की भयावहता मिटती नहीं है। स्कूल के अनुशासित जीवन के बाद जब एक छात्र उमंग, उत्साह के साथ कॉलेज में प्रवेश करता है, तब उसे रैगिंग की सच्चाई का भान नहीं होता। जब सीनियर्स रैगिंग लेकर उसे प्रता‍ड़ित करते हैं तो वह समझ पाता है कि रैगिंग होती क्या है? हंसी, मजाक, थोड़े से मनोरंजन, सीनियर छात्रों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार से प्रारंभ हुई रैगिंग अपशब्द बोलना, नशा कराना, यौन उत्पीड़न, कपड़े उतरवाना जैसे घृणित स्तर तक पहुंच चुकी है।

 

छात्रों के साथ रैगिंग करने के परिणाम 

 

जिन छात्रों के साथ रैगिंग की जाती है, वे मानसिक तौर पर कमजोर होने लगते हैं। उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है। उन पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव भी पड़ता है। रैगिंग एक तरह का अपराध है, यह छात्र को आत्महत्या तक करने को मजबूर कर देता है। कई छात्रों के साथ बहुत बुरा व्यवहार हुआ है, जिसकी वजह से उन्होंने आत्महत्या की भी है। सर्वोच्च न्यायालय ने रैंगिंग को मानवाधिकारों का हनन बताते हुए, देश के सभी शिक्षण संस्थानों को इससे कड़ाई से निपटने के सख्त आदेश दिए थे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी यूसीजी एक्ट 1956 को प्रभावी बनाकर इसे सख्ती से लागू किया था। साथ ही यह निर्देश भी दिया कि इसकी अवहेलना करने वाली संस्थाओं के प्रति दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।

 

इसकी रोकथाम के लिए अभिभावक और शिक्षक को क्या करना चाहिए?

शिक्षक और अभिभावक रैगिंग के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षकों को बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है। स्कूल और कॉलेज में शिक्षकों छात्रों से बात करनी चाहिए अगर उनकों किसी भी तरह की दिक्कत है तो उसका समाधान निकालना चाहिए।

कॉलेज में छात्रों को सीसीटीवी कैमरा भी उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे वह छात्रों की गतिविधियों पर नजर रख सकें। अलार्म बेल, एंटी रैगिंग हेल्प लाइन नंबर और एंटी रैगिंग वैन की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे वह इस अपराध से बच सकें।

रैगिंग करने पर छात्रों पर सख्त कार्रवाई भी करनी चाहिए।

रैगिंग करने वाले बच्चों के बीच नैतिकता की कमी पाई गई है, अतः एजुकेशन में भी नैतिकता का पाठ पढ़ाना बेहद जरूरी है।

एकेडमिक काउंसिलिंग की भी व्यवस्था होनी चाहिए। इसके तहत एक शिक्षक को 10-15 बच्चों की जिम्मेवारी मिले। वे टाइम टू टाइम बच्चों से बात कर उन्हें ऐसी चीजों से दूर रहने के लिए प्रेरित करें।

घर में अभिभावकों को अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। अगर वो शांत औऱ गुमसुम हैं, तो उनसे उसका कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए। उन पर किसी भी तरह का तनाव न डाले। बच्चों के साथ दोस्त बन कर रहना चाहिए उनको काउंसलिंग करने की जरूरत है, ताकि वह अपनी सारी बातें आसानी से शेयर कर सकें।

रैगिंग के कारण केवल एक दो छात्रों पर असर नहीं होता अपितु अन्य छात्रों, उनके परिवारों और बड़े स्तर पर देखें तो समाज पर असर होता है। इसीलिए रैगिंग के पूरी तरह से ख़तम करने के लिए सब स्टेकहोल्डर्स का योगदान आवश्यक है।