राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020

अच्छी शिक्षा किसी देश का महत्वपूर्ण लक्ष्य है, इसके द्वारा देश की जनसंख्या को संपत्ति के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। भारत एक विकासशील देश है, अतः यहां शिक्षा विशेष रूप से आवश्यक है। वर्तमान में भारत की अधिकांश जनसंख्या युवा है जिसकी औसत आयु लगभग 26 वर्ष से कम है। एक अनुमान के अनुसार भारत 2026 में औसत 29 वर्ष आयु के साथ सबसे युवा राष्ट्र होगा। इस जनसंख्या को लाभांश में परिवर्तित करने के लिए शिक्षा एक आवश्यक टूल है।

इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए हाल ही में केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में दो बड़े फैसले लिए हैं।

  • पहला - केंद्रीय मानव संसाधनव विकास मंत्रालय (MHRD) का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education) किया है।
  • दूसरा - नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) को स्वीकृति दे दी है।

यह स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति है। इससे पूर्व वर्ष 1968 में और 1986 में शिक्षा नीति लायी गई थी। 1986 में लायी गई नीति को 1992 में संशोधित किया गया था। 34 वर्ष बाद यह नई नीति लाई गई है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लिए 2015 से ही प्रयास प्रारंभ कर दिये गये थे। 2016 में पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यन की कमेटी ने नई शिक्षा नीति पर रिपोर्ट पेश की थी। जून 2017 में इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदे के लिए समिति गठित हुई, जिसने 31 मई, 2019 को रिपोर्ट सौंपी। इनके आधार पर इस नीति को तैयार किया गया है।

नई शिक्षा नीति के अनुसार स्कूल स्तर पर किये गये परिवर्तन-

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में स्कूल स्तर पर मौजूदा 10+2+3 सिस्टम को 5+3+3+4 में बदला गया है। 5 साल का फाउंडेशनल एजुकेशन, 3 साल प्रिपरेटरी, 3 साल मिडल और 4 साल सेकंडरी लेवल पर स्कूलिंग कराई जाएगी।

सरकार 2030 तक प्री स्कूल से सेकेंड्री लेवल यानी माध्यमिक स्तर तक 100% ग्रॉस एनरोलमेंट के अनुपात को लक्षित कर रही है।

इसके अलावा राज्य स्कूल मानक प्राधिकरण में अब सभी सरकारी और निजी स्कूल शामिल होंगे। पहली बार सरकारी और निजी स्कूलों में समान नियम लागू होंगे। इससे निजी स्कूलों की मनमानी और फीस पर लगाम लगेगी।

साथ ही ग्रामीण, पिछड़े व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को पढ़ाई से जोड़े रखने के लिए स्कूलों में नाश्ता भी मिलेगा। अब तक मिड-डे मील में दोपहर का भोजन मिलता था। इससे स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति दर्ज कराने में विशेष सहायता होगी। इसके अलावा शारीरिक जांच के आधार पर सभी बच्चों को हेल्थ कार्ड भी मिलेगा।

गुणवत्ता सुधारने के लिए स्कूली शिक्षा की हर पांच साल में समीक्षा होगी। वर्ष 2022 के बाद पैराटीचर नहीं रखे जाएंगे। शिक्षकों की भर्ती सिर्फ नियमित होगी।

स्कूलों में बच्चों को कम से कम 5वीं कक्षा तक उनकी गृह भाषा, मातृ भाषा और क्षेत्रीय भाषा में निर्देश दिए जाएं। हालांकि 8वीं और उससे आगे की कक्षाओं के लिए भी इसे अपनाया जा सकता है। छठी कक्षा से बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाएगी।

नई शिक्षा नीति के द्वारा ऑनलाइन व डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके द्वारा जहां पारंपरिक और व्यक्तिगत शिक्षा का साधन नहीं होगा, वहां स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों को ई-माध्यमों से उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम बनाया जाएगा।

इस नीति में बोर्ड परीक्षाओं को ज्यादा महत्व न देते हुए उन्हें सरल बनाने की बात कही गई है।

नई शिक्षा नीति के अनुसार कॉलेज स्तर पर किये गये परिवर्तन-

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन दर को 2020-2035 तक बढ़ा कर 50% करना। 2018 में यह दर 26.3% थी। उच्च शिक्षा संस्थानों में कम से कम 3.5 करोड़ नई सीटें बढ़ाई जाएंगी।

कॉलेज स्तर पर व्यापक आधार वाली, बहु-विषयक, समग्र स्नातक शिक्षा का प्रावधान, जिसमें पाठ्यक्रम लचीला, रचनात्मक और व्यावसायिक शिक्षा से समन्वित होगा।

उच्च शिक्षा संस्थाओं के लिए एकल विनियामक बनाया जाएगा। साथ ही विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। बैचलर डिग्री चार साल की की जाएगी। हालांकि 3 साल का भी विकल्प रहेगा। जो स्टूडेंट्स किसी कारणवश बीच में कोर्स छोड़ेंगे, उन्हें भी क्रेडिट ट्रांसफर और एक ब्रेक के बाद अपनी डिग्री पूरी करने का मौका मिलेगा।

12वीं के बाद कॉलेज स्तर पर चार विकल्प होंगे। चार साल के बैचलर कोर्स में पहला साल पूरा करने पर सर्टिफिकेट, दो साल पर एडवांस डिप्लोमा, तीन साल पर बैचलर डिग्री और चार साल पर रिसर्च के साथ बैचलर डिग्री कोर्स पूरा कर सकते हैं। यानी मल्टीपल एंट्री और एग्जिट का विकल्प मिलेगा।

अगले 15 साल में कॉलेजों को डिग्री देने की स्वायत्ता प्रदान कर दी जाएगी। कॉलेजों के लिए यूनिवर्सिटीज से मान्यता की जरूरत नहीं होगी। डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा भी खत्म किया जाएगा।

विश्व की टॉप 100 यूनिवर्सिटीज में से कुछ को भारत आने का प्रोत्साहन दिया जाएगा। शीर्ष भारतीय संस्थानों को वैश्विक बनाने का प्रायस किया जाएगा।

2040 तक सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को मल्टीडिसिप्लीनरी बनाया जाएगा। पाली, प्राकृत, पर्सियन के लिए यूनिवर्सिटी कैंपसों में ही राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किए जाएंगे।

मास्टर डिग्री कोर्स के बाद पीएचडी से पहले एमफिल कोर्स नहीं होगा।

नई शिक्षा नीति के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6% शिक्षा पर खर्च किया जाएगा। शिक्षा पर जीडीपी के 6% खर्च की संस्तुति 1968 की शिक्षा नीति के अनुमोदक कोठारी के द्वारा भी की गई थी। जिसे शिक्षा नीति 2020 में अंततः स्थान दिया गया है। यह बहुत ही उत्साह जनक बात है। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार भारत में 2017 में जीडीपी का मात्र 2.7% खर्च किया गया था। यह एक विकासशील राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है।

भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है। देश में तीन दशक के इंतजार के बाद नई शिक्षा नीति लागू हो रही है। इस नीति का सफल क्रियांवयन देश में उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था और उज्ज्वल भविष्य की आशा व्यक्त करता है।