तनाव प्रबंधन

क्या आप तनाव से ग्रस्त हैं?

यह एक ऐसा सवाल है जिसे वर्तमान समय में किसी से भी पूछने पर उत्तर में साधारणतया हां ही सुनने को मिलता है।

आखिर यह तनाव है क्या?

यह दुख, दबाव या बेचैनी की एक अवस्था है जो लंबे समय तक बनी रहती है। यह अवस्था तब उत्पन्न होती है जब हम किसी कार्य या बात का दबाव महसूस करने लगते हैं और हर बात को नकारात्मक रूप से आवश्यकता से अधिक सोचने लगते हैं।

आज के समय में दुनिया में हर तीसरा व्यक्ति तनाव से ग्रस्त है। हर आयु वर्ग के लोगों के पास तनाव का अपना एक अलग भिन्न कारण है। परंतु यदि एक साधारण कारण की बात करें तो प्रत्येक व्यक्ति अपने काम व दिनचर्या को लेकर ही तनाव में आ जाते हैं।

एक स्टडी के अनुसार यह पाया गया है कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं कहीं अधिक तनाव का शिकार होती हैं। उनके तनाव का कारण या तो घरेलु वातावरण या यदि वे कामकाजी है तो उनके कार्यस्थल का वातावरण भी होता है।

तनाव के इस फेर में केवल वयस्क महिला या पुरूष ही फंसे हैं बल्कि इसने बच्चों को भी नहीं छोड़ा है, फिर चाहे वह स्कूल जाने वाला बच्चा हो, या किसी प्रतियोगात्मक परीक्षा की तैयारी करने वाला किशोर, या कोई डिग्रीधारी ग्रेजुएट सभी तनाव से ग्रसित हैं।

छात्रों में तनाव के कारण-

वर्तमान समय में हर उम्र के छात्र किसी ना किसी कारण से तनाव से ग्रसित हैं। ये बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्र या मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले छात्र भी हो सकते हैं।

तनाव के मामले में विभिन्न डिग्रियां प्राप्त कर चुके सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत युवा भी पीछे नहीं है, बल्कि हम यह तक कह सकते हैं कि वो इन सबमें सर्वाधिक तनाव लेते देखे गये हैं। यह तनाव कभी-कभी इस हद तक बढ़ जाता है कि ये छात्र कुछ अप्रिय कदम तक उठा लेते हैं, जो न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए भी एक अपूर्णीय क्षति बनकर रह जाती है। यदि छात्रों में तनाव के कारणों पर गौर किया जाये तो कुछ प्रमुख कारण सामने आते हैं जैसे कि-

1.परीक्षाओं में सबसे बेहतर करने का दबाव-

आजकल समय के साथ अंकतालिका में लिखे गये नंबरों का महत्व बढ़ता जा रहा है जो कहीं ना कहीं बाल मन पर एक भार की भांति प्रतीत होता है। साथ ही छात्र इस दबाव के कारण ठीक से प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं।

2.माता पिता की ओर से की जाने वाली अतिरिक्त अपेक्षायें-

वर्तमान समय में माता पिता अपने बच्चों से बड़ी बड़ी अपेक्षायें रखते हैं, यह जाने बिना कि क्या उनका बच्चा इस लायक है या नहीं या कहीं वह कुछ और तो नहीं करना चाहता। यह सब बातें उसके मन पर बोझ ही बढ़ाती है।

3. समाज का भय/असफलता का डर-

धीरे-धीरे बदलते समय के परीक्षायें तो कठिन होती जा रही हैं और विभिन्न सरकारी नौकरियों में सीटें घटती जा रहीं हैं। ऐसे में जाहिर है कि इनमें सफल होने वाले छात्रों का अनुपात भी समय के साथ घटेगा ही। परंतु यह घटता अनुपात छात्रों में बढ़ते तनाव की एक बड़ी वजह बनता जा रहा है।

4. अपने साथियों के समूह में बेहतर करने का दबाव-

वर्तमान में यदि हम देखें तो छात्रों में तनाव का एक अन्य कारण अपने साथियों के समूह में सबसे आगे निकलने की होड़ भी है। अन्यथा वे उनके समूह में ही वे अपमानित महसूस करते हैं।

तनाव प्रबंधन के तरीके-

यह बात सही है कि आजकल के वातावरण में तनाव किसी को भी आसानी से घेर लेता है, परंतु यह कोई ऐसी समस्या नहीं है कि जिसका समाधान ना हो सके। इसके लिए निम्नलिखित तरीके अपनायें जा सकते हैं-

1. शारीरिक व्यायाम व सैर-

एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। अतः यदि हम अपनी काया व उसके पोषण पर ध्यान दे साथ ही शारीरिक व्यायाम व सैर करें तो ना केवल हम धीरे-धीरे तनाव को मात दे सकते हैं। बल्कि समय के साथ अपनी क्षमताओं को और अधिक बढ़ा सकते हैं।

2. मानसिक शांति व शांत चित्त के लिए योगा-

तनाव के कारण हमारा दिमाग हर समय व्यर्थ की चितांओं से घिरा हुआ नकारात्मक विचारों का गढ़ बन जाता है। इसलिए मन को शांत रखने के लिए योगा एक अच्छा विकल्प है। इसकी महत्ता को ध्यान में रखकर ही संयुक्त राष्ट्र के द्वारा मान्यता प्रदान की गई है।

3. छात्रों व उनके माता पिता की काउंसलिंग-

छात्रों में तनाव को कम करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम घर के वातावरण को अच्छा रखें। इसके लिए ना केवल छात्रों की बल्कि उनके माता पिता की भी काउंसलिंग की जानी चाहिये।

4. स्कूल में सकारात्मक महौल का विकास-

छात्र अपने दिन का एक बड़ा हिस्सा स्कूल में व्यतीत करते हैं। अतः यहां का वातावरण भी उनके चित्त पर गहरा प्रभाव डालता है। इस कारण से छात्रों में तनाव को कम करने के लिए स्कूल के माहौल की खासी महत्ता हो जाती है। इसलिए स्कूल में सकारात्मक वातावरण का विकास किया जाना चाहिये। यहां पढ़ाई के साथ अन्य क्रियाकलापों का आयोजन भी अनिवार्य है।

साथ ही शिक्षकों को कक्षा में तनाव से ग्रस्त या दुखी या उदास छात्र पर विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए।

5. समाज में जागरूकता-

तनाव को कम करने की प्रक्रिया में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कदम है समाज में जागरूकता का विकास। यह एक ऐसी कार्यवाही है जिसके अभाव में अन्य सभी प्रयास व्यर्थ हैं।

इसके लिए हम सभी को एकजुट होकर तनाव से ग्रसित या दुखी व्यक्ति की सहायता के लिए प्रयास करना होगा।

निष्कर्ष-

तनाव हमारे शरीर को धीरे-धीरे दीमक की तरह खोखला कर देता है। बदलते समय के साथ यह समस्या और भी गहरा सकती है, क्योंकि आने वाले समय में घटते संसाधन और बढ़ती जनसंख्या के कारण जीवित रहने के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।

इसके लिए हमें अपने मन, मस्तिष्क व काया को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। अर्थात् आचार, विचार और काया को दुरूस्त रखकर हम ना केवल तनाव पर विजय पा सकते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी एक मिसाल बन सकते हैं।

जज़्बा

तुझमें भी वो आग है ना बुझेगी जो पानी से।

तुझमें भी वो जज़्बात है ना बहेंगे जो पानी में।।

पहचान खुद को तू है चल पड़ा कामयाबी की राह पर।

कर बुलंद खुद को तुझे है पहुंचना शिखर पर।।

 

रास्तें में आयेंगे जाने कितने ही पत्थर और धूल।

तुझमें ही वो बात है जो बिखेर दे रास्तों में फूल।।

कदम तू बढ़ाये जा रूक ना तू कभी झुक ना तू कभी।

रास्ता हो कितना ही लम्बा चलना है तूझे उस पर ही।।

 

कर हौसले अपने बुलंद अब तेरा समय है गया।

कर हर प्रयास फिर देखना तू अपनी मंज़िल पा जायेगा।।

फिर झांक ले तू अपने अन्दर खुद को ही जान जायेगा।

के तुझ में ही वो बात है जिससे सारा जहां झुक जायेगा।।

                                                    - प्रियंका चौधरी