स्कूली शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?

स्कूली शिक्षा का बहुत महत्व है, शिक्षा एक व्यापक लक्ष्य है। शिक्षा बच्चों के अंदर विचार और कर्म की स्वतंत्रता विकसित करती है। दूसरों के कल्याण और उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न करती है। शिक्षा हर वर्ग के लिए अनिवार्य है। वास्तव में शिक्षा पर होने वाले विचार विमर्श को इनकी वास्तविकताओं के सन्दर्भ में रखकर देखा जाए। शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने की सोच और यह विचार कि सभी बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, शिक्षा और विकास के क्षेत्र में काम कर रहे हम में से अधिकांश लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है।

दुनिया के प्रगतिवादी विचारों ने बच्चों के अधिकारों के दृष्टिकोण से स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। लोगों में शिक्षा ऐसी होना चाहिए जो उनके अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की, और मौलिक अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति, तथा सौन्दर्यबोध की समझ को विकसित कर सके।


शिक्षा एक ऐसी पूंजी है जिसको हर कोई पाना चाहता है। बच्चों के माता-पिता के अंदर एक आस होती है, जो पढ़ा लिखाकर उनके बच्चों को आगे बढ़ाता है।

 

शिक्षा के कई उद्देश्य हैं-

विशिष्ट उद्देश्य

विशिष्ट उद्देश्यों का अर्थ है असामान्य उद्देश्यों की संज्ञा। इन उदेश्यों का क्षेत्र तथा प्रकृति सीमित होती है। यही नहीं, इनका निर्माण किसी भी विशेष परिस्थिति तथा विशेष कारण को ध्यान में रहते हुए किया जाता है।

सार्वभौमिक उद्देश्य

सार्वभौमिक उद्देश्य मानव जाती पर समान रूप से लागू की जाती है। इन उद्देश्यों का तात्पर्य व्यक्ति में वांछनीय गुणों का विकास करना है। अत: इनका क्षेत्र विशिष्ट उद्देश्यों की भांति किसी विशेष स्थान अथवा देश तक सीमित न रह कर सम्पूर्ण मानव जाती है।

वैयक्तिक उद्देश्य

व्यक्ति वादियों के अनुसार समाज की अपेक्षा व्यक्ति बड़ा है। शिक्षा का वैयक्तिक उदेश्य व्यक्ति की व्यक्तिगत शक्तिओं को पूर्णरूपेण विकसित करने पर बल देता है। शिक्षा की व्यवस्था इसी सत्य पर आधारित होनी चाहिये तथा शिक्षा को ऐसी दशायें उत्पन्न करनी चाहिये।

 

शिक्षा के उद्देश्य का सम्बन्ध सम्पूर्ण समाज के समस्त छात्रों से हैं। इनका निर्माण अत्यन्त उतरदायित्वपूर्ण है। यदि जल्दी से अनुचित प्रथा और दोषपूर्ण उद्देश्यों को सुधार कर बेहतर नीति का निर्माण ना किया गया तो केवल एक अथवा दो बालक को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज की आने वाली न जाने कितनी पीढ़ियों को हानि होने का भय है। शिक्षा के वैज्ञानिक इसके लाभप्रद उद्श्यों का निर्माण करते हैं। वस्तुस्थिति यह है कि शिक्षा समाज का दर्पण है। समाज की उन्नति अथवा अवनति शिक्षा पर ही निर्भर करती है। जिस समाज में जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था होती है, वह समाज वैसा ही बन जाता है।

 

शिक्षा प्राप्त करने के लिए सबसे पहले एक अच्छा नागरिक बनना बहुत जरूरी है। उसके बाद व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में सफल व्यक्ति बनना होता है। हम बिना अच्छी शिक्षा के अधूरे हैं क्योंकि शिक्षा हमें सही सोचने वाला और सही निर्णय लेने वाला बनाती है। इस प्रतियोगी दुनिया में, शिक्षा मनुष्य की भोजन, कपड़े और आवास के बाद प्रमुख अनिवार्यता बन गयी है। यह सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान प्रदान करने में सक्षम है।